"चंद्रगुप्त" जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित एक ऐतिहासिक नाटक है, जो मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन पर आधारित है। इस नाटक में चंद्रगुप्त की राजनीतिक कुशलता, उनके संघर्ष, और उनके साम्राज्य की नींव रखने के प्रयासों का चित्रण किया गया है। जयशंकर प्रसाद ने इस नाटक के माध्यम से चंद्रगुप्त मौर्य की महत्ता और उनके नेतृत्व को एक काव्यात्मक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है।
नाटक का सारांश:
"चंद्रगुप्त" का मुख्य आधार चंद्रगुप्त मौर्य का व्यक्तित्व और उनके द्वारा मौर्य साम्राज्य की स्थापना की कड़ी मेहनत है। यह नाटक मुख्य रूप से उनके जीवन के एक महत्वपूर्ण कालखंड को प्रस्तुत करता है, जब वे महान कूटनीतिज्ञ चाणक्य के मार्गदर्शन में भारत को एक सम्राट के रूप में स्थापित करते हैं।
नाटक की शुरुआत चंद्रगुप्त के एक युवा और संघर्षशील व्यक्तित्व को दिखाती है। चाणक्य का विश्वास और उनके द्वारा चंद्रगुप्त को राजनीति और कूटनीति की शिक्षा देना इस नाटक का केंद्रीय विचार है। चाणक्य के नेतृत्व में चंद्रगुप्त अपने शत्रुओं, विशेषकर सिकंदर के बाद के यवन आक्रमणकारियों, से संघर्ष करते हैं और भारत में एक मजबूत साम्राज्य की नींव रखते हैं।
चंद्रगुप्त की यात्रा केवल सैन्य विजय तक सीमित नहीं है, बल्कि नाटक में उनके मानवीय पहलुओं, जैसे आंतरिक संघर्ष, नीतियों के निर्णय और राष्ट्र की भलाई के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को भी महत्व दिया गया है। इस नाटक में चंद्रगुप्त के व्यक्तिगत जीवन और उनके साम्राज्य को स्थिर करने की चुनौती भी प्रमुख है।
नाटक के अंत में चंद्रगुप्त अपने महान कार्यों के बाद भी आंतरिक शांति और संतुष्टि की ओर बढ़ते हैं, और अपने साम्राज्य को स्थिर करने के बाद सन्यास की ओर अग्रसर होते हैं।
मुख्य पात्र:
- चंद्रगुप्त मौर्य – नाटक के नायक, जिन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
- चाणक्य – चंद्रगुप्त के गुरु और उनके मार्गदर्शक, जिन्होंने उन्हें राजनीति और कूटनीति सिखाई।
- द्रुपद – चंद्रगुप्त के शत्रु, जिनसे चंद्रगुप्त को संघर्ष करना पड़ता है।
- दीन – चंद्रगुप्त के मंत्री और सम्राट के रूप में उनके सहायक।
"चंद्रगुप्त" नाटक में प्रसाद ने चंद्रगुप्त के जीवन की राजनीतिक और मानसिक परतों को अत्यंत सुंदरता से प्रस्तुत किया है। यह नाटक न केवल एक ऐतिहासिक कथा है, बल्कि एक प्रेरणा भी है, जो नेतृत्व, कूटनीति, और राष्ट्रीय एकता के महत्व को दर्शाता है।