"ममता" जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित एक प्रसिद्ध हिंदी नाटक है, जो 1932 में लिखा गया था। यह नाटक माँ के असीम प्रेम और त्याग की भावना पर आधारित है और मानवीय संवेदनाओं को गहराई से उजागर करता है।
नाटक का सारांश:
"ममता" नाटक का केंद्रीय विषय माँ का प्रेम है, जो न केवल अपनी संतान के प्रति प्रेम और बलिदान को दर्शाता है, बल्कि उस प्रेम की महानता को भी उद्घाटित करता है, जिसमें एक माँ अपनी संतान के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर देती है।
नाटक की कहानी एक माँ और बेटे के रिश्ते पर आधारित है, जिसमें माँ का जीवन अपने बेटे के लिए संघर्ष और बलिदान से भरा हुआ है। माँ का यह प्रेम उसकी भावनाओं, संघर्षों और इच्छाओं से कहीं अधिक होता है, और यह नाटक इसी प्रेम को एक विशेष दृष्टिकोण से प्रस्तुत करता है।
नाटक में ममता (माँ) का पात्र अपने बेटे के लिए अपने सुख और इच्छाओं का त्याग करती है। वह किसी भी प्रकार की स्वार्थपरता से दूर रहती है और केवल अपने बेटे के अच्छे भविष्य की कामना करती है। नाटक में यह दिखाया गया है कि माँ का प्रेम बिना किसी अपेक्षा के होता है, जिसमें त्याग और समर्पण की भावना प्रमुख होती है।
इस नाटक में प्रसाद जी ने माँ के असीम बलिदान, माँ की महानता और प्यार की सर्वोच्चता को बहुत ही संवेदनशील और काव्यात्मक तरीके से प्रस्तुत किया है। उन्होंने माँ के रूप में उस अदृश्य शक्ति को चित्रित किया है, जो अपने बच्चों के लिए किसी भी परिस्थिति में संघर्ष करती है, भले ही उस संघर्ष का फल उसे खुद न मिले।
मुख्य पात्र:
- ममता (माँ) – जो अपने बेटे के लिए प्रेम, बलिदान और त्याग की मिसाल पेश करती है।
- बेटा – माँ के असीम प्रेम का केंद्र, जिसके लिए माँ अपना सर्वस्व समर्पित कर देती है।
"ममता" नाटक केवल एक माँ-बेटे के रिश्ते की कहानी नहीं है, बल्कि यह समाज, सहानुभूति, और मानवता की भी गहरी व्याख्या करता है। जयशंकर प्रसाद ने इस नाटक के माध्यम से माँ के प्रेम को सर्वोच्च, अडिग और शाश्वत रूप में प्रस्तुत किया है।