"प्रेमाश्रम" प्रेमचंद का एक प्रमुख उपन्यास है, जिसे उन्होंने 1918 में लिखा। यह उपन्यास भारतीय समाज में व्याप्त असमानता, शोषण और संघर्ष को चित्रित करता है। प्रेमचंद ने इस उपन्यास में मजदूर वर्ग की कठिनाइयों और समाज के निर्धन वर्ग की समस्याओं को उजागर किया है।
कहानी की मुख्य धारा एक व्यक्ति, रामविलास की है, जो अपने परिवार और समाज के लिए संघर्ष करता है। वह अपने जीवन में सम्मान और बेहतर स्थिति प्राप्त करने की कोशिश करता है, लेकिन उसे सामाजिक असमानताओं और शोषण का सामना करना पड़ता है। उपन्यास में प्रेमचंद ने यह दिखाया है कि समाज के विभिन्न वर्गों, विशेषकर गरीब और श्रमिक वर्ग के लोग, कैसे शोषित होते हैं और उनके जीवन में क्या कठिनाइयाँ होती हैं।
"प्रेमाश्रम" में प्रेमचंद ने भारतीय समाज के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक तंत्र की आलोचना की है और उस समय के संघर्षशील वर्गों के दर्द को बयां किया है। उन्होंने यह भी दिखाया कि अगर समाज को प्रगति करनी है, तो उसे समानता और न्याय की ओर कदम बढ़ाने होंगे।
यह उपन्यास प्रेमचंद के समाजवाद और इंसानियत के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। उपन्यास में प्रेम, समर्पण, और मानवीय संवेदनाओं का भी चित्रण किया गया है, जो उसे एक गहरी और प्रभावशाली कृति बनाता है।